अमराई


चलो रे! ले चल भाई,
मास जेठ की तपिश झुलसाई,
बागों में ले चल चारपाई,
बैठ गीत गुनगाई, बहे न पुरवाई,
ललचे जिया मोरा देख अमराई,
चलो री चल सखी, चलो रे माई।

आज गुल्ली-डंडा खेल खूब होई रे, सिलो-पाती में डंडी दूर फेंकल जाई रे,
सब मिल कान्हा के छकाई,
गुड़ खाकर खूब पिवाई होई रे ताई,
फिर आम तोड़के नमक लगाई,
होए खूब खवाई रे,
चलो री बहनी, चलो रे भौजी,
आज बहुते आनंद आई।

चेतना प्रकाश चितेरी, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश