रचयिता- सुधीर अवस्थी ‘परदेशी’ (सुन्नी, हरदोई)-
आजाद हुआ भारत , आजादी अधूरी है ।
सपना जो संजोया था, वह मंशा न पूरी है ।
शिक्षा हो स्वास्थ्य या फिर , कानून की बात करें ।
छोटे बड़े सबकी जनहित की बात करें ।
एक खाका गया खींचा, वह बात अधूरी है ।
आजाद हुआ भारत , आजादी अधूरी है ।
देखो तो नजर उठा, भेदभाव बहुत दिखता ।
कीमत जिसकी थी कभी वह माटी मोल बिकता ।
क्यों वक्त ऐसा आया, ऐसी क्या मजबूरी है ।
आजाद हुआ भारत , आजादी अधूरी है ।
गायों को देखो तो , सड़कों पर फिरती हैं ।
गौमाता यह अपनी, बेमौत से मरती हैं ।।
खुद खाने को नहीं तो छोड़ना जरूरी है ।
आजाद हुआ भारत , आजादी अधूरी है ।
किसान की हालत तो, अब बद से बदतर है ।
100 बीघे वाले से, सरकारी चपरासी बेहतर है ।।
खेती से न काम चले, करना मजदूरी है ।
आजाद हुआ भारत , आजादी अधूरी है ।
नेताओं की नीति से अब तक, देश दुखी दिखता ।
ऊपर-नीचे को मजा, मध्यम वाला पिसता । ।
‘परदेशी’ देशभक्तों ने जो सोचा , मंजिल से दूरी है ।
आजाद हुआ भारत , आजादी अधूरी है ।