‘ आजादी ‘

आशीष सागर (युवा क्रान्तिकारी समाजसेवी और पत्रकार)- 


है प्रीति जहाँ की रीत सदा

मै बात वही झुठलाता हूँ,

भारत का रहने वाला हूँ

पत्नी ‘ लाश उठाता हूँ ।

हो…हो…हो !..होहोहो ।

पहले गोरे थे चोर यहाँ,

अब काले संसद बेच रहे,

किसको कहते है आजादी

मन में मेरे ये पेच रहे ।

कैसे जीता है ‘दाना मांझी ‘

ये सच तुमको दिखलाता हूँ,

भारत का रहने वाला हूँ

पत्नी की लाश उठाता हूँ ।

हो…हो…हो ! होहोहो ?

जनता इतनी गूंगी -बहरी,

जैसे नदियाँ हो ठहरी,

सब उजड़े से वीरान लगे,

गाँव-गली, बाशिंदे शहरी ।

इस मिटटी में क्यों जनम लिया,

किसका कर्ज चुकाता हूँ ?

भारत का रहने वाला हूँ

पत्नी की लाश उठाता हूँ ।

हो…हो..हो..होहोहो ।

इस देश का सिस्टम ऐसा है,

सब कुछ यहाँ पे पैसा है,

न्याय मांगना अदालत में,

अमृत पीने जैसा है ।

पत्नी तो मर गई मेरी

अब बेटी की लाज बचाता हूँ,

भारत का रहने वाला हूँ ,

भारत की बात सुनाता हूँ ।

हो..हो..हो..होहोहो ।

न पेट में उसके रोटी थी,

न बिस्तर में आराम दिया,

मतदाता होकर ऐसा मैंने

कौन सा था गुनाह किया ?

लो ‘ लाल सलाम ‘ कहा हमने

हर सपने को आग लगाता हूँ,

भारत का रहने वाला हूँ

पत्नी की लाश उठाता हूँ ।।