शिक्षक : ‘वेतन भोगी सोच’ है, शिक्षक-सुचिता व्यर्थ

ऐसी दुर्गति शिक्षकी, चिन्तन,चिन्ता माथ ।
बरसों से है घिस रही, झाड़ू अपने हाथ ।।

‘वेतन भोगी सोच’ है, शिक्षक-सुचिता व्यर्थ ।
शिक्षणेत्तर बोझ ने, कर दिया बेड़ा गर्क ।।

दौड़ा-दौड़ा फिर रहा, निपटाऊ हर वर्क।
हाय शिक्षकी का हुआ, कुंठित जीवन नर्क ।।

ऊपर से मुस्कान है, भीतर आहत मान।
मूरख तू क्या करेगा, लेकर के सम्मान।।

लदा सिलेन्डर-सायकिल, और दूध की कैन।
तेज़ हाँफती भागती, शिक्षक-मारुति वैन ।।

ई-ट्रेनिंग्स ने कर दिया,सचमुच नाक में दम।
सब्जी,फल संग ढो रहा, एम०डी०एम० का बम ।।

अपनी-अपनी धांगते, शिक्षक-नेता-नीति ।
घबराहट में जी रही, शिक्षकत्व की रीति ।।

‘आह’ करे तो धमकियाँ, जीभ काट दें हाथ ।
निर्वचनी, मन बावरा, कैसे बने सनाथ ।।

कौन सहायी हो भला, समझे मन की पीर ।
पब्लिक चुन-चुन मारती, तीक्ष्ण व्यंग के तीर ।।

      अवधेश कुमार शुक्ला
        मूरख हिरदय
   शिक्षक दिवस के पश्चात की
        प्रयाश्चित संध्या

भाद्रपद सोमवती अमावस्या कृष्ण
06 सितंबर 2021