● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
एक–
जीवन-मरण समान है, दोनो की गति एक।
क्षमता जितनी हो सके, कर्म करो सब नेक।।
दो–
जन्म लिये किस-हेतु हो, ध्येय नहीं है भान?
जीवन अति अनमोल है, करना इसका मान।।
तीन–
आह-जुड़ी संवेदना, कातर दृष्टि-प्रधान।
जन्म-मृत्यु लय-संग का, कौन करे संधान?
चार–
आयु ढलकती आ रही, हो चिन्तन-विस्तार।
व्यर्थोत्सव किस-हेतु है, पाना अब निस्तार।।
पाँच–
जन्म-जयन्ती व्यर्थ है, उत्सव भी निस्सार।
समुचित जन्मदिनांक है, दिखते क्यों लाचार।।
छ: –
जन्मतिथि की मान्यता, अति प्रचलन-आधार।
जन्मदिन हर वर्ष नहीं, समझो इसका सार।।
सात–
मति-रति-गति प्रस्थान कर, कर भविष्य का ध्यान।
युग कलि लक्षित वाम यहाँ, मात्र धरो सब ज्ञान।।
आठ–
केक काटते जन यहाँ, निष्प्रभ करते ज्योति।
हो रही संस्कृति-क्षरण, महिमा जानो द्योति।।
नौ–
आशा-प्रत्याशा लिये, लक्ष्य करो संधान।
जीवन-जगती जागरक, वर्द्धन कर लो मान।।
दस–
मधुरिम राग अधर लिये, चिर-संचित अभिलाष।
बाट हमारी जोहती, कर माला ले भाष।।
(सर्वाधिकार सुरक्षित― आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १ जुलाई, २०२३ ईसवी।)