मन का भाव : धर्म का लक्ष्य अब अलक्षित क्यों?

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
(प्रख्यात भाषाविद्-समीक्षक)

 डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय-


कैसे-कैसे बाबा अब दिखने लगे हैं,
कामिनी ले बाँहों में दिखने लगे हैं।
भगवा वस्त्र बेईमानी की चादर में,
आश्रम में बहुरुपिये दिखने लगे हैं।
कौन है साधु और शैतान यहाँ,

चरित्र और चेहरे बिकने लगे हैं।
सादगी पर प्रहार भौतिकता की,
असत्य की बाज़ी जीतने लगे हैं।
धर्म का लक्ष्य अब अलक्षित क्यों?
पाप का चन्दन सब घिसने लगे हैं।
दिखे थे शीर्ष पर कल तक जितने,
आज ऊँचाइयों से वे गिरने लगे हैं।
कोई यहाँ सत्य से बढ़कर नहीं,
विधर्मियों पर मेघ घिरने लगे हैं।

(सर्वाधिकार सुरक्षित : डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय; ८ अक्तूबर, २०१७ ई०)