गोरक्षक भूमिगत हुए, संकट मे गोवंश!

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

एक–
जीवन जलमय हो रहा, शासन है बेहोश।
गरदन दाबे मौत है, जन-जन मे है रोष।।
दो–
सेना पथ पर दिख रही, नेता सब हैं मौन।
फफक रहे हैं लोग सब, आँसू पोंछे कौन?
तीन–
गोरक्षक भूमिगत हुए, संकट मे गोवंश।
उखड़े पाँव सनातनी, अस्ली मे हैं कंस।।
चार–
भाग रहे घर छोड़कर, जीवन को ले शेष।
जायें तो जायें कहाँ, छूट रहा है देश।।
पाँच–
आँख देखती जलप्रलय, तनमन है बेहाल।
पलक झपकती जब खुले, खड़ा सामने काल।।
छ:–
हिन्दूवादी सो रहे, बेचें घोड़ा रोज़।
बाढ़प्रभावित रो रहे, हिन्दू उनमे खोज।।
सात–
धारा जल निष्पक्ष दिखे, करे कौन है खोज?
आह-वाह हैं संग मे, दु:ख-सुख यही विधान।
(सर्वाधिकार सुरक्षित― आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १५ जुलाई, २०२३ ईसवी।)