कैसे भूल जाऊँ मैं
वो आह वो पीड़ा
जो हर पल तूने मुझे दिया।
कैसे भूल जाऊँ मैं
उन मासूम निगाहों में बसा डर
जो तेरे हर जुल्म का
साक्षी है।
कैसे भूल जाऊँ मैं
वो लम्हे वो पल
जो तेरे जुल्म सहकर भी
बिताए मैंने तेरे संग ।
कैसे भूल जाऊँ मैं
उन मासूम नन्हीं कलियों को
जिन्हें खिलने से पहले ही
रौंद डाला तूने।
कैसे भूल जाऊँ मैं
वह एक-एक क्षण
जो तेरे दिए आँसू पीकर
मैंने गुजारे।
कैसे भूल जाऊँ मैं
वो सारे लम्हे
जो तेरे अत्याचारों को
सहकर मैंने गुजारे।
कैसे भूल जाऊँ मैं
वो दर्द वो तड़प
जिससे गुज़री हूँ
मैं आज तक।
डॉ. सपना दलवी
एस.एच.तोंदले ॐ निवास, यू० बी० हिल्स
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(कर्नाटक)