दर्पण

मीलों दूर सफ़र करना
जहां खुद के अलावा कोई नहीं मिलना
राहों में कांटों की चुभन से
लोगों को हम भी कांटे नज़र आएंगे
कभी पूछा चाह क्या है ?
खुद का बोल
दर्द को बे-दर्द बताएंगे
छोड़ी कोई गली या किनारा
जहां अश्क बहे
पक्ष में जब कहीं लफ्ज़ खोले
तो सिले मुंह ने भी हज़ारों जहर घोले।
दर्द हृदय का चुभ रहा था नस-नस में
जंजीरें मानो है जकड़ रही
होठों को सिले,
आंखों को मले,
लाश है खड़ी।

प्रीति मधु शर्मा
लद्दा, घुमारवीं, बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश