देख शून्य की ओर, अपनी व्यथा सुनाती हूंँ

शून्य


मैं अपने जीवन से
जब कभी हताश होती हूंँ ,

देख शून्य की ओर
अपनी व्यथा सुनाती हूंँ।

मौन होकर वह मुझे सुनता ,
मेरे मन का बोझ हल्का होता ,

चेतना प्रकाश से कहती –
उसकी चुप्पी ही मेरी प्रेरणा बनती ,

फिर, मैं अपनी आंतरिक शक्तियों को एकत्रित करती हुई,

अपनी उदासी को दूर करते हुए
जीवन में एक कदम आगे बढ़ती हूँ।

–चेतना प्रकाश ‘चितेरी’, प्रयागराज