अवधेश कुमार शुक्ला
गहरी नदिया, नाव पुरानी ।
नाव चलाउब, हम का जानी ।
सखी, साथु जौ हमरो देतिउ,
दुनिया मोरि न होति बिरानी ।।
धारमधार अsधार न सूझी ।
चली एकला, राह न बूझी ।
सखी, कतहु नहिं जो भरमउतिउ,
गरिया कि परिया नाम बिलानी ।।
रेख, सुरेखी, सब संरेखी ।
बिलसति, सरसति, पुलकति देखी ।
सखी, तनुकु ना जो उलझउतिउ ,
सजती राति चाँदनी रानी ।।
धनि-धनि भाग, सुभाग, सुलोचन ।
राग, विराग सिद्ध गोरोचन ।
आतम, सखी, समुझि परमातम,
तुमरेइ कथा चढ़ति गुरधानी ।।
नदिया कि पार चली बैरागिनि ।
पारमपार अपार सुहासिनि ।
सखी, नाव बिनु डोरि चलि परी,
दुनिया देशहि सबै बिरानी
गहरी नदिया पार हुइ चली,
श्रद्धा साध सुधा संधानी ।।