घर है तुम्हारा

संँभाल लो ! घर संँवार लो !
घर है तुम्हारा |

बड़े नाजुक होते हैं दिल के रिश्ते,
तुम इन्हें निभा लो!
धीरे – धीरे बंद मुट्ठी में रेत की तरह फिसल जाएगा,
मन में प्रायश्चित के सिवा कुछ भी नहीं बचेगा ,
अपनों से कैसा शिकवा ?

तुम्हारा है परिवार ,
तुम इसे बेगाना न समझो !

एक दूसरे से प्रेम कर लो!
चार दिन की है जिंदगानी ,
खाली हाथ आए हैं खाली है जाना
सब कुछ धरा पर रह जाएगा ,

सामंजस्य बिठा लो !
मायके से ज्यादा ससुराल है प्यारा ,
अपना के देखो तुम एक बार ,
प्रेम करते हैं सभी तुमसे,
थोड़ा मान – सम्मान इन्हें दे कर देखो,
मोम की तरह हृदय है इनका,
तुम इनकी भावनाओं से खेलना छोड़ो !

संँभाल लो! सँवार लो ! घर है तुम्हारा |

चेतना प्रकाश चितेरी, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश