गुनाह

कभी हमने भी
मोहब्बत का गुनाह किया था।
तुमसे मिलकर हमने
खुद को खुद से
जुदा किया था।
हर पल देखते थे तुमको
सोचते थे तुमको
इश्क में तुम्हारे हमने
अपने मस्तिष्क को भी
फ़िदा किया था।
कभी हमें भी
किसी की दिलकश
अदाओं ने घायल किया था।
कभी हमें भी
किसी की मुस्कुराहट भरी
आंखों ने खयाल किया था।

राजीव डोगरा
(टी.जी.टी हिंदी)
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गाहलिया
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