इतिहास बीमार है—

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
(प्रख्यात भाषाविद्-समीक्षक)

 


इतिहास के फड़फड़ाते पृष्ठ
कर रहे हैं,
असामयिक मौत का इन्तिज़ार 
और
बदलता युग,
वार्धक्य का एहसास करते हुए
समय के चरमराते पलंग पर
खाँसता है।
इंसान बूढ़े होते इतिहास की
गरदन मरोड़
सभ्यता की चादर में ढाँप कर अपना चेहरा
चल पड़ना चाहता है एक ओर!
इंसान नहीं चाहता,
ज़िन्दगी के बिखरे हुए टुकड़ों को
बटोर कर सहेज ले।
इतिहास ‘उपहास’ में बदल जाता है।
और ‘इंसान’ (?)
अपनी तेज़ गति में
बढ़ाये हुए नाख़ून से
ख़ुद का नाम काल-पत्र पर खोद लेता है।
शायद उसको सड़ी लाश समझकर
पागल भेड़िया
सशंक होकर, भयाक्रान्त होकर
इधर-उधर देखकर
पैरों से खरोंच कर
मिट्टी चबाता है
और ताकता रहता है
जिधर इंसान अपनी क़ब्र
अपने ही हाथों से बना-बनाकर मर्सिया गा रहा है।
जी हाँ,
इतिहास बनता है-बिगड़ता है।
(सर्वाधिकार सुरक्षित : डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय; २१ नवम्बर, २०१७ ईसवी)