फहर रहा था अमर तिरंगा जगह युनिअन जैक की |
गुजर गयी थी स्याह रात चमकी किस्मत देश की |
स्वाधीन हुआ परतंत्र देश फिर नया सवेरा आया |
पन्द्रह अगस्त का दिन खुशियों की झोली भर कर लाया |
बापू, चाचा, सरदार सभी की मेहनत रंग थी लायी |
भगत सिंह, अशफाक, लाहिड़ी की क़ुरबानी रंग लायी |
खुशियाँ कब-कब बंधकर रहती वो तो आती जाती हैं |
वक्त बदलते समय न लगता कैसे रंग दिखाती हैं |
आज़ादी फिर आज बन गयी सत्ताधीशों की दासी |
बापू के अरमान जल रहे खादी पहने अपराधी |
देश जल रहा दंगों में कुम्भकर्ण सरकार हो गयी |
पराधीन फिर हिंद हो गया आज़ादी बर्बाद हो गयी |
फक्र करूँ किस आज़ादी पर तिल-तिल भारत ज़लता है |
आम आदमी आज़ादी के समझ मायने डरता है |
आज सियासत की आँधी में आज़ादी का रंग उड़ गया |
भारत की पावन धरती का रंग आज बदरंग हो गया |
स्वाधीन हिंद की वर्षगांठ हो तुम्हे मुबारक बार-बार |
पर जन-गण-मन है नंगा ,भूखा इज्ज़त अपनी तार -तार |
स्वाधीन हिंद की वर्षगांठ हो तुम्हे मुबारक बार-बार ||
(राघवेन्द्र कुमार ”राघव”)