जागो-जागो देश! अब, जमके करो प्रहार

★ आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

गंगाजल ले घूमता, अपराधी के देश।
साधु बनाता संग ला, बना-बना के वेश।।
दानव-जैसा दिख रहा, देव बहुत हैं दूर।
शैतानों-सा बोलता, दिखता मानो सूर।।
अधिनायक बन घूमता, मन से दिखता हीन।
आतंकी का रूप ले, लगता हृदयविहीन।।
संविधान को खा गया, मनमाना व्यवहार।
जागो-जागो देश! अब, जमके करो प्रहार।।
पापी-सा है दिख रहा, कहता गोल-मटोल।
विश्वासी वह है नहीं, रहता विष को घोल।।
(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; ९ अगस्त, २०२१ ईसवी।)