जगन्नाथ शुक्ल (इलाहाबाद)
मञ्चों से नित गीता गाता,
औ पढ़ता क़ुरान की आयत हूँ।
विविध धर्म औ भाषाओं संग,
मैं वो जीता – जागता भारत हूँ।
सुबह सवेरे भरता अज़ान,
औ पूजता नित ऐरावत हूँ।
अँगूठे पे चढ़ा जनेऊँ,
नित अर्घ्य सूर्य को देता हूँ।
सबद – कीर्तन – प्रार्थना में,
भाग निरन्तर लेता हूँ।
हिन्दी मेरे रग में बहती,
उर्दू को सहोदरी मानता हूँ।
अँग्रेजी भी बस गई ऐसे,
जैसे सदियों से जानता हूँ।