झूठ के पाँव

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

तुमने जो बीज बोया है,
उसका पौध तो नहीं देख पायेगा;
पर लोग उस फल को चखते ही
धिक्कारेंगे तुझे।
तुमने दिये क्या :―
झूठ, अविश्वास, वैमनस्य?
तुमने हमारे राष्ट्र को छला है;
एक बार नहीं, सौ बार।
तेरा अतिरिक्त आत्मविश्वास,
मिथ्यावादी अवधारणा, विभाजननीति,
अवसरवादी गिद्धदृष्टि, छल-प्रपंच,
खा जायेगी, समय की हिंस्र पशुता।
भाग भी नहीं पायेगा;
क्योंकि झूठ के पाँव
चलते नहीं, लड़खड़ाते हैं।

(सर्वाधिकार सुरक्षित― आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १५ अगस्त, २०२३ ईसवी।)