हिन्दी कविता : खुदगर्जी

गिर रही है न
ये जो आसमा से तड़पती बूंदे
कभी तुम इनसे
मज़ा लेते हो
तो कभी ये डूबकर
तुम्हारे अस्तित्व का मज़ा लेती है।

बह रही हैं न ये नदियाँ
कभी खुद बहती है
अपनी ही मस्ती में
तो कभी तूफ़ान बन
तुम को बहा
ले जाती है समुंदर में।

बर्फ से ढके है न
जो ये पर्वत
कभी तुम इनका
आरोहण करते हो
तो कभी ये दबा देते हैं
तुम्हारी जिद्दी शख्सियत को।

राजीव डोगरा
(युवा कवि व लेखक)
पता-गांव जनयानकड़
कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश