डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय-
जब मैं जीवन का
मूल अस्तित्व तलाश करने लगा
तब हृदय ने अतिवादी कहा |
जब मन को मन में पैठाने लगा
तब शरीर ने उत्पाती कहा
जब विचार का विचार से
संघर्षण करने लगा
तब भाव ने विश्वासघाती कहा
और जब इन सबसे इतर
प्रकृति से संवाद करने लगा
तब सबने संघाती कहा |