
राघवेन्द्र कुमार ”राघव”-

मत मारो मुझे मेरी माँ
मैं टुकड़ा तुम्हारा ही माँ
मत मारो मुझे मेरी माँ |
खता क्या हमारी हमें भी बताओ
जीवन हमारा माँ यूँ न मिटाओ ,
मैं साया हूँ तेरा ही माँ
मत मारो मुझे मेरी माँ |
तू भी कभी थी हमारी तरह
मैं हूँ मेरी माँ तुम्हारी तरह ,
मैं पूरे करुँगी तेरे ख्याब माँ
मत मारो मुझे मेरी माँ |
दुनियां है कैसी ये देखी नहीं
किलकारी मेरी है गूंजी नहीं ,
मैं रोशन करुँगी तेरा बाग माँ
मत मारो मुझे मेरी माँ |
भैया से कमतर बनूँगी नहीं
घर में किसी से लडूंगी नहीं ,
टॉफी की जिद भी करुँगी न माँ
मत मारो मुझे मेरी माँ |
जब खत्म ही था करना
फिर सींचा हमें क्यों ,
मैं गुलशन का तेरे ही हूँ पुष्प माँ
मत मारो मुझे मेरी माँ |
कॉलेज जाने की जिद न करुँगी
चौका – चूल्हा मैं घर पर करुँगी ,
तेरा काम सारा करुँगी मैं माँ
मत मारो मुझे मेरी माँ |
नहीं बोझ तुझ पर बनूँगी कभी ,
न शिकवा शिकायत करुँगी कभी |
हमें जन्म दे दे ये विनती है माँ ||