माननीय और आम आदमी

आरती जायसवाल (कवयित्री एवं लेखिका)

माननीय जब शहर में आते हैं

रास्ते साफ हो जाते हैं
कूड़े -करकट के साथ -साथ
आम आदमियों को हटाने में
भारी मशक्कत करनी पड़ती है
पुलिस बल चौकन्ना हो जाता है
प्रशासन सचेत …….!
सुरक्षा के घेरे और मजबूत कर दिये जाते हैं
इतने कि आम आदमी
उनकी बन्द गाड़ियों में उनकी शक्ल भी न देख सकें
लाठी -डंडे खाते हैं धकियाये जाते हैं
और हवाई फ़ायर में मारे जाते हैं
फिर दस बीस तीस मरने वालों की संख्या बन जाते हैं
आम आदमी………!
माननीय सभा को सम्बोधित करते हैं
मंद मुस्कान उछालते हैं उपस्थित खास जनों पर
निर्वाण प्राप्त भाव से वो सब को निहारते हैं
उनसे बहुत दूर
एक -दूसरे पर चढ़ते हुए आम आदमियों तक
उनकी आवाज पहुँचाने के लिये
लगे होते हैं कई -कई लाउडस्पीकर
आम आदमी चाहें भी तो अपना रोना नहीं रो सकते
वह रोना जो माननीय की मुस्कान को छू सके
और अपने आँसुओं से उसे तरल बना सके …!
उनका वक्तव्य है_
अब हम प्रगति कर रहे हैं
अब हम गरीब नहीं रहे
अब हम किसी के सामने हाथ नहीं फैलाते
यह हमारी उन्नत स्थिति का प्रमाण है……!
किन्तु;
यह स्थिति उनकी है आम आदमियों की नहीं
काफी उन्नति की है
भूखे नंगे और गरीब भी नही हैं
किसी के सामने हाथ नहीं फैलाते
पर आम आदमी नहीं
वो
स्थिति सुधर रही है
पर हमारी नहीं उनकी …..।