मानवता है मर गयी, नहीं हृदय में मर्म

शोकपूर्ण अभिव्यक्ति :————


डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय-


मनसा-वाचा-कर्मणा, सौ में शून्य पाय।
बटन दबाना सोचकर, जाये मुँह की खाय।।
बात मन की बिसर गया, तन में खोजे प्रीत।
क़िला हवा में बन रहा, बालू की है भीत।।
राष्ट्रप्रेम मतदान तक, मारे ख़ूब उछाल।
बात बनाकर शान से, काट रहा है माल।।
जन-जन विस्मित हो रहा, कैसे नेता पाय!
सत्ता उसको क्या मिली, वादे सब बिसराय।।
निर्दय चेहरा दिख रहा, शातिर बेहद रूप।
कल-बल-छल से धनी वह, मन से बहुत विरूप।।
कर्कश वाणी बोल रहा, सत्ता ही उसका धर्म।
मानवता है मर गयी, नहीं हृदय में मर्म।।

(सर्वाधिकार सुरक्षित : डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, इलाहाबाद; १३ मई, २०१८ ई०)