मन्दिर-मस्जिद लड़ रहे, हर पल हर दिन रोज़

एक–
ध्यान बँटाने के लिए, तरह-तरह की खोज।
मन्दिर-मस्जिद लड़ रहे, हर पल हर दिन रोज़।।
दो–
सत्ता चेरी दिख रही, चिपकी कुर्सी देह।
रड़ुवा-रड़ुवी संग हैँ, माँग भरी है रेह।।
तीन–
ग़ज़नी-गोरी संग मिल, लूट रहे हैँ देश।
चण्डाली सूरत दिखे, भाँज रहे उपदेश।।
चार–
कुत्ते जंगल छोड़कर, पायेँ शहरी ठाँव।
बेसुध इतने दिख रहे, भूल गये हैं गाँव।।
पाँच–
नेता रबड़ी चाँभते, जनता भूखी सोय।
रामराज है देश मे, काहेँ को अब रोय।।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १९ अप्रैल, २०२४ ईसवी।)