माया-सम सब दिख रहे, अभिधा करती शोर।।

एक–
संदेही इस जगत् मे, दिखते हैँ चहुँ ओर।
समय दिखे शंकालु है, मोहग्रस्त है भोर।।
दो–
चतुर-सुजान सुभग यहाँ, कोई ओर-न-छोर।
माया-सम सब दिख रहे, अभिधा करती शोर।।
तीन–
यही जगत् की रीति है, साधु बन गया चोर।
सत्मार्ग सम्मुख सभी, फिर भी पापी घोर।।

क्लिष्ट शब्दार्थ– सुभग=सौभाग्यशाली; अभिधा = सामान्य शाब्दिक अर्थयुक्त शब्दशक्ति।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पण्डित पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २३ अक्तूबर, २०२४ ईसवी।)