मेरा भारत सुन्दर भारत

जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद-

देश हमारा सन्त सरीखा मुकुट हिमालय है जिसका ।

कटि में बनी मेखला गङ्गा सागर पग धोता है जिसका।।
धन्य है भारत भूमि सखे!  धन्य है इसकी अतुल कान्ति।
इस मिट्टी के कण कण में छिपी हुई सी विपुल शान्ति।।
वैश्विक सभ्यता के मध्य है विलसित भारत की संस्कृति।
ज्ञानपुञ्ज सा उभर रही धरती पर भारत की आकृति।।
कई जाति,धर्म और भाषा से न विचलित इसकी चाल है।
इन पुष्पित अगणित प्रसूनों से सुवासित इसका भाल है।।
भारत देश नहीं है सखे!अपितु चलता फिरता मुसाफिर है।
भारत से वह भाग गया जो समझता खुद को काफिर है।।
मौलिक है भारत का जीवन अलौकिक इसकी संरचना।
सदा ही रहती है पुलकित प्रकृति की ये अद्भुत रचना ।।
चलो ‘जगन’ तुम भी भारत के चरणों में निज माथ रखो।
जहाँ रहो जीवन में अपने भारत माँ की रज साथ रखो।।