एक अभिव्यक्ति : मुद्दत बाद ज़िन्दगी सयान हुई, उसे सब्ज़बाग़ दिखाओ नहीं

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय


बेशक, चाहो पर सराहो नहीं,
बेशक, पाओ पर निभाओ नहीं।
मुद्दत बाद ज़िन्दगी सयान हुई,
उसे सब्ज़बाग़ दिखाओ नहीं।
मस्त-मौला हूँ और फक्कड़ भी,
भूले से कभी आज़्माओ नहीं।
मनमाफ़िक मर्ज़ी का मालिक हूँ,
ख़याली पुलाव अब बनाओ नहीं।
चाहत बिखरी है तो बिखर जाने दो,
हसीं पलकों से उसे सजाओ नहीं।
(सर्वाधिकार सुरक्षित : डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, इलाहाबाद; १२ मार्च, २०१८ ईसवी)