सई नदी की करुण कथा : पौराणिक और ऐतिहासिक नदी मर रही है

बयाँदारी हमारी

राश दादा राश, बंगालुरू

राश दादा राश (बंगालुरू)-


कायस्थ* हूँ कागजी कारोबार है मेरा

स्याही से रिश्ता और कलम यार है मेरा

नब्ज ना टटोलना यारों ,मेरे जिस्म का

मयखाने की बस्तियां शराबी टोलियाँ

मेरे धमनियों मे प्रवाहित रक्त के सार हैं
कहें , तो !
दादा-राश*के हृदय में कलम की नशीली
झूमती बयार हैं
सर्द का ,दर्द का अपना पुराना रिश्ता है

राश * राहें अंधेरी हो, तो भी बुहारता हूँ

सूरज ! जो काँट का खौफ ना करे और
पसर जाए ,,, स्वागत ,,और ,,,स्वागत ।।