जनवरी लाती है नव वर्ष ।
दिसम्बर जाता है हर वर्ष ।
नवल उत्साह, तरंग, उमंग,
वर्ष भर चलते हैं संघर्ष ।।
सुनहली प्रात, रुपहली शान ।
प्रभाती सुमधुर पंछी गान ।
विविध रंग पुष्प, वल्लरी-रास,
प्रकृति अवलोकन देता हर्ष ।।
सांध्य वेला का मौन सुहास ।
निशा में रुचिता संग विहास ।
कभी प्रायश्चित घन संत्रास,
विरह में जीवन का उत्कर्ष ।।
समय का चक्र सतत गतिमान ।
नियति-नटि देती नहीं विराम।
खोजते अपना-अपना मार्ग,
सुख दुःख के बहुरूप, विमर्श ।।
भूलता अपना कौन व्यतीत ?
काल के मस्तक पर लिखा अतीत।
जगत करता है उन्हें प्रणाम,
बनें जो धरती पर आदर्श ।।
यहाँ है किसको किसकी चाह ?
सभी हैं अपनी-अपनी राह ।
व्यथित मन रमता करे अलाप,
कांक्षी ममता का संस्पर्श ।।
आपकी प्रगति सुख और शांति ।
लाएगी अपनों मे संक्रांति ।
बिखेरो सुमनो सा सौंदर्य ।
करो सबके मन को आकर्ष ।।
नाच लो, गाओ, लो आनंद ।
करो, मिल स्वागत यह नववर्ष ।
गया, फिर मिलता कौन कहाँ?
निकलता यह अंतिम निष्कर्ष ।।
अवधेश कुमार शुक्ला
मूरख हिरदै , मूर्खों की दुनिया
पौष दशमी चंद्र, नववर्ष
1 जनवरी 2023