कविता : उन्हें मालूम है

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय-

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
(प्रख्यात भाषाविद्-समीक्षक)


होठों से मुसकान उतरी कब-कैसे, उन्हें मालूम है,
चेहरे पे कालिख़ पुती कब-कैसे, उन्हें मालूम है |
चाहत शर्मिन्दा बन गयी और वे तमाशाई रहे,
तिनका-मानिन्द ख़्वाब बिखरा कैसे, उन्हें मालूम है |
दाखिल-ख़ारिज़ होती रही मुहब्बत की अर्जी,
फ़ैसला उनके हक़ में हुआ कैसे, उन्हें मालूम है |
धूल झोंकते रहे मेरी आँखों में न जाने कबसे
मेरी मासूमियत रही भोली कैसे, उन्हें मालूम है |
हसीन क़ातिल हैं छुरा फिराते बड़े एहतिराम से,
दारोगा-हाक़िम हैं मुट्ठी में कैसे, उन्हें मालूम है |
पानी का बुलबुला नहीं एक ज़ल्ज़ला है ‘पृथ्वी’,
अपनी लहरों में नचाता कैसे, उन्हें यह मालूम है |