अश्वनी पटेल, बालामऊ, हरदोई–
चोट लगी थी मन पर उस क्षण,
एक आह निकली थी गम्भीर।
कुछ नहीं, बस संवेदनाएँ थीं,
जिनको सोच वह हुआ अधीर।
कितनी माओं और बहनो ने,
बेटे-भाई खोये थे।
पाला जिनको तन-मन-धन से,
सपने बहुत संजोए थे।
रक्त-रंजित बाग देखकर,
भावुक मन में संग्राम शुरू।
‘नाईटहुड’ की उपाधि त्यागकर,
भारत का वह बना ‘गुरु’।
राष्ट्रगान दिया भारत को,
भारत का राजदुलारा था।
युगदृष्टा, दार्शनिक, विचारक,
साहित्य जगत का तारा था।
राजहंस सा श्वेत पटल मन,
पानी जिसका आला था।
सच्चे मन से सिंचित करके,
शान्ति निकेतन पाला था।
प्रकृतिवाद और प्रेम की,
रसधारा से जो था सम्पूर्ण।
भारतरूपी नभ में चाँद-सा,
अतुल चाँदनी से परिपूर्ण।
तेज रवि सा, नाम ‘रबी’ था,
कई कलाओं का संगम था।
जिसके सजल स्वप्न में प्रतिपल,
भारत का दृश्य विहंगम था।