
रक्त रंजित यह धरा किसके कहे उसकी हुई? ख़ून की हर बूँद न इसकी हुई न उसकी हुई। मर गए जो, वो भी इंसान थे, मारने वाले जिन्हें ज़रा से, मुठ्टीभर शैतान थे। यह संघर्ष किसे अमर कर पाया है? आदमी ने आदमी हो, आदमी को तड़पाया है। न ये रहा न वो रहा, सिर्फ़ खूनी इतिहास ही ठहरा। पीढ़ियों का दर्द थामें अब तक खड़ा। जिसमें आदम से आदम ही लड़ा। चीखते रहे मासूम से बच्चे, मां की लाश को सोते देख। तभी एक, हाँ! तभी एक गोली और चली उन्हें रोते देख। मौन हो गया माहौल, सो गया सन्नाटा भी कोलाहल को आते देख। रक्तरंजित यह धरा न इसकी हुई न उसकी हुई। गोलियों की बरसात में मौन बस बेक़सूर सी। सहमी सी, गहरी सी सिसकी हुई।
महेन्द्र महर्षि
दूरदर्शन अपार्टमेंट
गुडगांव
८.१०.२०२३.