
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
एक–
‘तन्त्र’ बपौती बन गया, ‘गण’ घायल हर ओर।
‘लोक’ इशारे नाचता, सेंध लगाते चोर।।
दो–
‘तन्त्र’ ग़ुलामी जी रहा, ‘गण’ फुटबॉल-समान।
जाहिल अनपढ़ कर रहे, हम सबका अपमान।।
तीन–
लोक-लाज को त्याग कर, लोकरहित है ‘तन्त्र’।
अन्धा-बहरा ‘गण’ बना, पण्डित झोरें मन्त्र।।
चार–
आया अब गणतन्त्र है, करो दिखावा आज।
चाल समझता समय है, खोलेगा कल राज़।।
पाँच–
संविधान है जेब मे, मनचाहा है खेल।
चोर मत कहो ‘चोर’ को, वरना होगी जेल।।
(सर्वाधिकार सुरक्षित― आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २६ जनवरी, २०२३ ईसवी।)