● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
आँखों-ही-आँखों में, बात हो जाने दो, बातों-ही-बातों में, अब रात हो जाने दो। बनने-सँवरने लग गये, ख़यालात पुराने, रातों-ही-रातों में, मुलाक़ात हो जाने दो। ज़मानाए दराज़१ जुस्तजू, परायी ही रही, चाहत दीदार का, शह-मात हो जाने दो। आँखों में हया डाल, नज़रें फिसल गयीं, निगाहों में अब ज़रा बरसात हो जाने दो। उठता है तूफ़ान तो क़ह्र बरपायेगा बेशक, दिले मुज़्तरिब२ में जज़्बात हो जाने दो।
शब्दार्थ– १दीर्घ काल से
२व्यथित हृदय।
(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज ; १२ जून, २०२२ ईसवी।)