शिव तो शिव हैं

शिव समान यह शिशु सुशोभित,
वरदानी सा पुलकित है। 
शिव विग्रह के साथ स्वयं भी, 
दिखता अति आलोकित है। 
नमः शिवाय, ओम जागृत, 
महारात्रि पर अभिजित है। 
डमरू के डिमडिम स्वर सुनकर, 
विश्वधरा भी गुंजित है। 
भौतिक सुख की लिए कामना,
मनुज भटकता फिरता है। 
किन्तु अभौतिक आनन्द प्रभा से, 
खुद को रखता वंचित है। 
वाचन में वाणी याचक सी, 
उद्बोधन मे पीड़ा भी। 
स्वयं बना शिव, विभा प्रभा में,
स्वयमेव आह्लादित है।।