सोच रहा हूँ एक गीत लिखूं

पिण्टू कुमार पाल-


सोच रहा हूंँ एक गीत लिखूं,

मेरे मन का मीत लिखूं,

या तेरे मन की प्रीति लिखूं,

प्रकृति का सौन्दर्य लिखूं,

या विधवा के मन की व्यथा लिखूं,

कहाँ हैं आप ?

किसान की आस लिखूं,

या पपीहे की प्यास लिखूं,

लिख दूंँ इन बहते झरनों पर,

या दूर तक फैले समंदर पर,

लिख दूँ नदियों की कल कल पर,

या भूख से बिलखते बचपन पर,

लिख दूँ लहराती फसलों पर,

या लिख दूँ बंजर माटी पर,

लिखूंँ कला के सम्मान पर,

या वीरों के हो रहे अपमान पर,

बढ़ते भारत का गुणगान लिखूं,

या राजनीति का गिरता सम्मान लिखूं,

बढ़ते आतंकवाद पर लिखूं,

या घटते संस्कार पर लिखूं,

मोहम्मद ग़ोरी, अकबर से मिला अपमान लिखूं,

या पृथ्वीराज चौहान, महाराणा प्रताप का सम्मान लिखूं,

हिन्दू पर लिखूं, या मुसलमान पर लिखूं,

सोच रहा हूँ सारा हिंदुस्तान लिखूँ ॥

आशीर्वाद की अभिलाषा

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