सई नदी की करुण कथा : पौराणिक और ऐतिहासिक नदी मर रही है

प्यारे झरने

रे रे झरने,
तेरा निनाद !
सुनकर बज उठता
ह्रदय-नाद ।
अन्तस् में भरता,
आह्लाद ।
सानन्द दृशा,
लगतीं भरने ।
रे रे झरने !
प्यारे झरने ।।

तेरा प्रलाप,
कल-कल कुल-कुल,
हर धार चपल,
चलती ढुलमुल ।
दोहरा लूँ,
तेरी तरल तान ।
तेरा प्रवाह धरती धरने ।
रे रे झरने ,
अविचल झरने ।।

तेरे कन-कन,
का स्पन्दन ।
करता क्षन क्षन,
नव अभिनन्दन ।
मैं आत्मपरक,
तू सत्यपरक ।
अमृत जल,
पा लूँ दो दोने ।
रे रे झरने,
निर्मल झरने ।।

रे! रे! झरने
तेरा निनाद !
कहता कुछ मन में
है विषाद ।
तेरा उदगम तो,
हिमनद है ।
तो क्यों तत्पर,
सरिता से मिलने?
रे रे झरने
अनुपम झरने ।।

झरना: –
मेरा उदगम तो
सागर है ।
बादल बनकर
हिमनद बनता ।
हिमकन छन,
पिघल बनी सरिता ।
बहती है
प्रियतम से मिलने ।
तू भी- चल,
प्रियतम से मिलने ।
रे! रे! मूरख,
बन जा झरने ।
मेरी ही तरह,
लग जा बहने ।


अवधेश कुमार शुक्ला ‘मूरख हिरदै’
ज्येष्ठी पूर्णिमा
कबीर जयंती
(२७-०६-२०१८)