देख बुराई अपने अंदर
इसे मरना ही चाहिए,
जीवन में फैला अंधेरा
मिटना ही चाहिए।
यह दीपक है,
इसे जलना ही चाहिए।
लगी विचारों मे वर्षो की दीमक
इसे हटना ही चाहिए,
विरासत में पाया रूढ़िवादिता और अंधविश्वास।
इसे जलना ही चाहिए।
यह दीपक है,
इसे जलना ही चाहिए।
अपने को सर्वोच्च समझना
यह वहम हटना ही चाहिए,
मानव में ही ऊंच नीच की लगी जंग
इसे गलना ही चाहिए।
यह दीपक है,
इसे जलना ही चाहिए।
घमंड से भरी आंखें तेरी
इसे गिरना ही चाहिए,
द्वेष ईर्ष्या और अस्पृश्यता भावना को
अवगुण कहना ही चाहिए।
हर बुराई से जीतने के लिए
ज्ञान के दीपक को जलना ही चाहिए।
यह दीपक है,
इसे जलना ही चाहिए।
कविता शीर्षक -दीपक
नाम उमेन्द्र निराला
पता – हिंनौती, सतना, मध्य प्रदेश
अध्ययन – इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय प्रयागराज (उ.प्र.)