उन्हेँ औक़ात पर अब लाइए साहिब!

उनकी बातोँ मे, मत आइए साहिब!
उनके घातोँ मे, मत आइए साहिब!
हर गोट के मिज़ाज से, वाक़िफ़ हैँ वे;
भूलकर भी धोखा, मत खाइए साहिब!
ख़ैरात भी माँगेँ, तो मुँह मोड़ लीजिए;
उन्हेँ औक़ात पर, अब लाइए साहिब!
अय्याशी का दरबार, क्या ख़ूब है लगे;
एक बार तशरीफ़, ले आइए साहिब!
दिन के अँधेरे मे, भला दिखेँगे कैसे?
रात के उजाले मेँ ही, पाइए साहिब!
ख़ता से महब्बत है; मगर मानते नहीँ;
उनकी जानिब, अब जाइए साहिब!
तैश मे दिखते हैं, नख-शिख जनाब वे;
आँखों मे आँखें डाल, समझाइए साहिब!

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; ३ मई, २०२४ ईसवी।)