सई नदी की करुण कथा : पौराणिक और ऐतिहासिक नदी मर रही है

वन्दन का क्रन्दन!

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
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वन्दन!
विरूप सर्जन?
तेरा बार-बार अभिनन्दन।
वन्दन!
काया-स्यन्दन१?
तेरा बार-बार अभिनन्दन।
वन्दन!
नेत्रहीन-अंजन?
तेरा बार-बार अभिनन्दन।
वन्दन!
उधार का मंजन?
तेरा बार-बार अभिनन्दन।
वन्दन!
विद्रूप रंजन?
तेरा बार-बार अभिनन्दन।
वन्दन!
बाध्य चरण-वन्दन?
तेरा बार-बार अभिनन्दन।
वन्दन!
रक्तरंजित खंजन?
तेरा बार-बार अभिनन्दन।
वन्दन!
हर ओर क्रन्दन?
तेरा बार-बार अभिनन्दन।
वन्दन!
है कानन-नन्दन?
तेरा बार-बार अभिनन्दन।
वन्दन!
विषैला चुम्बन?
तेरा बार-बार अभिनन्दन।
वन्दन!
कापुरुष-मण्डन?
तेरा बार-बार अभिनन्दन।
वन्दन!
अस्तित्व-खण्डन?
तेरा बार-बार अभिनन्दन।
वन्दन!
विषाक्त स्पन्दन?
तेरा बार-बार अभिनन्दन।
वन्दन!
भयातुर कम्पन?
तेरा बार-बार अभिनन्दन।
वन्दन!
है पंकिल चन्दन?
तेरा बार-बार अभिनन्दन।
वन्दन!
भारत वा लन्दन?
तेरा बार-बार अभिनन्दन।
वन्दन!
गति-प्रगति मन्दन?
तेरा बार-बार अभिनन्दन।
वन्दन!
संस्कार-कन्दन२?
तेरा बार-बार अभिनन्दन।
वन्दन!
स्वार्थ चरण-चुम्बन?
तेरा बार-बार अभिनन्दन।
वन्दन!
घात करता 'वन्दन'?
तेरा बार-बार अभिनन्दन।
वन्दन!
है अलख निरंजन?
तेरा बार-बार अभिनन्दन।

क्लिष्ट शब्दार्थ :–१गलना २नाश।

(सर्वाधिकार सुरक्षित― आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २४ सितम्बर, २०२३ ईसवी।)