सत्य समझ लो सार को, मिथ्या है संसार

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

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एक–
पाप पुण्य से कह रहा, मेरा देख प्रताप।
लोक मुझे ही पालता, पर तू पाता ताप।।
दो–
जीवन-जंगल जल रहा, जलता नहीं प्रमाद।
सत्य वचन है जान लो, यहाँ-वहाँ उन्माद।।
तीन–
एक घड़ी-आधी घड़ी, चिन्तन हो अभिराम।
श्रम-सुषमा को देखकर, डग दिखते अविराम।।
चार–
मन-मयूर मन मोहता, मनमोहन निरुपाय।
ऋण-धन की चिन्ता नहीं, दिखते सभी उपाय।।
पाँच–
किसको किसकी क्या पड़ी, कौन करे अभिसार।
सत्य समझ लो सार को, मिथ्या है संसार।।
(सर्वाधिकार सुरक्षित― आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २२ अगस्त, २०२३ ईसवी।)