आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय की विचारजीविता और हृदयजीविता

       अभिव्यक्ति-शंख
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मेरे बाहुपाश के शब्दकोश से
स्नेह-सदाशयता-शालीनता
अन्तर्हित हो चुकी हैं।
मेरे पदचाप को सुनो
और पग-रज को देखो–
कोलाहल से परे
आर्त स्वर का अनुभव करो–
रक्त-रंजित मेरी आकांक्षा से
साक्षात् करो।
वर्जना की श्रृंखला+ में आबद्ध
मेरा अभिलाष,
मेरी उत्कण्ठा
आतुर हैं; उद्यत हैं; प्रतिबद्ध हैं
मनोगत भावों को
व्यञ्जित करने के लिए।
+यह अशुद्ध शब्द है।

        अभिव्यक्ति-दंश
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मेरी चित्रलेखा की खिलखिलाहट
मुझे निमन्त्रण दे रही है–
अज्ञात प्यास-कुण्ड में
निमग्न हो जाने के लिए।
सम्मोहक शक्ति के
संस्पर्श और संघर्षण
मेरी देह के आचरण की
सभ्यता की
पट-कथा लिख रहे हैं
और मैं सूत्रधार के रूप में
अपनी ही पराजय की
पृष्ठभूमि सुना रहा हूँ।

         अभिव्यक्ति-पंख
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पाप का कण-कण
मेरी जिह्वा से टकराता है
और ले जाता है–
एक ऐसे गह्वर में,
जहाँ पुण्य का प्रताप
आन्दोलित हो रहा है
और मेरा पाप
सिर चढ़ कर बोल रहा है।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १३ जुलाई, २०२० ईसवी)