
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
रूप-रंग सब बहुत सुहाया। मन से मन को भी अति भाया।।
करम-राह भी अति कठिनाई। मंज़िल करमबीर ही पाई।
सुनहुँ सुजान सुसील सनेहू। मान न मर्दन होवै देहू।।
आधि-ब्याधि सब रूप समाना। विधि-विधान सों सबहूँ माना।।
कलुषित नीति-नियम सब काहू।। घोर विरोध करैं सब जाहू।।
रामराज सब हँसी उड़ावैं। जाति-वर्ग सों देश बँटावैं।।
पण्डित-मुल्ला नाम कहावें। अर्थहीन जो ख़ुद को पावें।।
कुरसी बाप और महतारी। पीछे-पीछे सब संसारी।।
जुग हौं बहुत सयानो भाई। समझ न पायों इहि लरिकाई।।
आदि-अन्त अध्याय अधीता। बीत उमरिया साधि न बीता।।
(सर्वाधिकार सुरक्षित― आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २६ जनवरी, २०२३ ईसवी।)