
"कविता तभी शक्त और समर्थ मानी और जानी जाती है, जब उसमे लय और गति हो, इस दृष्टि से कवयित्री प्रियंवदा पाण्डेय की काव्यात्मक कृतियों मे भाव और प्रवाह देखते ही बनते हैं। कविता लिखी नहीं जाती, रची जाती है और रचना नैसर्गिक होती क्योंकि रचते समय ही रचना मे कवि बसता जाता है। यही कारण है कि कवि-हृदय से निर्गत भाव संतुलित विचारों की पाँख लगाकर उड़ने लगते हैं और कवि अपने संकल्पना के नाना रंगों मे रँगकर उसे हृदयग्राही बना देता है। वस्तुत: कवि हृदयजीवी होता है, तभी वह अपनी कविताओं मे रस का संचार कर पाता है। जैसे ही उसके भावपक्ष की तुलना मे विचारपक्ष दृढ़तर दिखता है वैसे ही उसकी कविता रसहीन होने लगती है। यही कारण है कि काव्यांग :― रस-छन्द-अलंकार के अभाव मे कविता-कामिनी रसवन्ती नहीं हो पाती।"
उपर्युक्त उद्गार हैं, प्रयागराज से पधारे भाषाविज्ञानी एवं मीडियाध्ययन-विशेषज्ञ आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय के, जिन्होंने गत दिवस 'नागरी प्रचारिणी सभा', देवरिया मे आयोजित वरिष्ठ साहित्यकार और काव्यशिल्पी प्रियंवदा पाण्डेय की दो काव्यात्मक कृतियों :– 'बन्द दरवाज़े का मकान' और 'समय के अश्व' के लोकार्पण-समारोह के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप मे व्यक्त किये थे।
मुख्य अतिथि आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने आगे कहा, "इस देश मे 'नयी कविता' के नाम पर प्रतिदिन हज़ारों पुस्तकें लोकार्पित होती हैं और उनमे से कई हज़ार मर जाती हैं। इसका मुख्य कारण है, परिवेश के प्रति चिन्ता का अभाव और पर्यावरण के प्रति सजगता मे कमी। यही कारण है कि कविता के नाम पर कुछ भी लिख दिया जाता है, जिसे समाज पढ़ता ही नहीं। इसके विपरीत, प्रियंवदा पाण्डेय की 'कवि की चोट', 'अच्छा लगता है', 'तुम्हारा हाथ', 'भगीरथ बनकर', 'तुम्हारे आने से', 'मायका छोड़ आयी है' आदिक रचनाएँ एक गूढ़ जीवन-दर्शन प्रस्तुत करती हैं।"
समारोह के आरम्भ मे मुख्य अतिथि आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने दीप-प्रज्वलन कर, समारोह का उद्घाटन किया था। अध्यक्ष डॉ० वीरेन्द्र मिश्र और विशिष्ट अतिथि डॉ० किशोर सिन्हा ने भी दीप-प्रज्वलन किये थे। सरस्वती-वन्दना और वेदपाठ भी किया गया। इसके पश्चात् समारोह-अध्यक्ष, मुख्य अतिथि तथा विशिष्ट अतिथि को पुष्पगुच्छ भेंट करने के पश्चात् नारिकेल, शॉल तथा स्मृतिचिह्न तथा अभिनन्दनपत्र भेंटकर उन्हें समादृत किया गया। समलंकृत किये गये अतिथिवृन्द के सम्मान मे उनके अभिनन्दनपत्र के वाचन भी किये गये।
इसी अवसर पर कवयित्री प्रियंवदा पाण्डेय का सम्मान किया गया और उनकी लोकार्पित कृतियों की समीक्षा भी प्रस्तुत की गयी थी।
इसी अवसर पर प्रियंवदा पाण्डेय ने अपनी कुछ कविताओं के भावपूर्ण पाठ किये थे।
पटना से पधारे साहित्यकार एवं रंगकर्मी डॉ० किशोर सिन्हा ने विशिष्ट अतिथि के रूप मे कहा, "प्रियंवदा पाण्डेय की कविताओं मे जीवन का आदर्श है और यथार्थ भी है। उनकी कविताओं मे जिस स्तर की गहराई है, वह बहुत कम देखने को मिलती है।"
इसी अवसर पर मुख्य अतिथि आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय और विशिष्ट अतिथि डॉ० किशोर सिन्हा ने लखनऊ, पटना, देवरिया आदिक स्थानो से आये कवि-कवयित्रियों तथा साहित्यकारों को शॉल, सम्मानपत्र तथा प्रतीकचिह्न प्रदान कर उन्हें सम्मानित किया। इसी अवसर नागरी प्रचारिणी सभा के सचिव इन्द्रकुमार दीक्षित ने भी अपने विचार व्यक्त किये थे।
पूर्व-प्राचार्य एवं कवि डॉ० वीरेन्द्र मिश्र ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य मे कहा, “प्रियंवदा पाण्डेय की कविताओं मे समय की अनुगूँज सुनायी पड़ती है।”
प्रियंवदा पाण्डेय ने समस्त अभ्यागतवृन्द के प्रति अपना कृतज्ञता-ज्ञापन किया। शिक्षक एवं कवि डॉ० पंकज शुक्ल ने समारोह का संयोजन एवं संचालन किया था।