रोहिंग्‍या शरणार्थियों को लेकर भारत में भी सियासत जलती रोटियाँ

राघवेन्द्र कुमार “राघव”
प्रधान संपादक, इण्डियन वॉयस 24

राघवेन्द्र कुमार राघव-


रोहिंग्‍या शरणार्थियों को लेकर भारत में भी सियासत की रोटियाँ जलायी जा रहीं हैं । रोटियाँ सेंकी जाती तो मामला खाने-पीने तक रह जाता । लेकिन यहाँ तो मामला धार्मिक रंग ले रहा है । कोई रोहिंग्‍या शरणार्थियों  को हिन्दू बनाकर बसा लेना चाहता है, तो कोई मानवता की मिसाल पेश करने की शिक्षा दे रहा है । सबके अपने – अपने फायदे और कायदे हैं । कोई भी यह सोच नहीं रहा है कि भारत के संसाधनों पर कितना दबाव पड़ेगा ? बेरोजगार युवाओं पर इसका क्या असर पड़ेगा ? जिस देश में हिन्दू अल्पसंख्यक और इस्लाम मानने वाले बहुसंख्यक हैं, वहाँ के हिन्दुओं का हाल देख लीजिए । क्या अब भारत भी हिन्दुओं की कब्रगाह बनने वाला है ? वामपंथी और इस्लामी सेक्युलैरिटी के बहाने षणयन्त्र तो ऐसा ही रच रहे हैं । वैसे भारत की राष्ट्रवादी सरकार से देश को बड़ी ही उम्मीदे हैं । प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के रोहिंग्‍या शरणार्थियों पर लिए गए निर्णय की सभी प्रतीक्षा कर रहे हैं ।

रोहिंग्‍या मुद्दे सरकार का रूख स्पष्ट करते हुए वित्‍त मंत्री जेटली ने कहा है कि सरकार ने उच्‍चतम न्‍यायालय में इस आशय के शपथ पत्र पर अपना पक्ष स्पष्ट कर दिया है । दाखिल शपथ पत्र में रोहिंग्‍या मुद्दे पर सरकार ने अपने नीतिगत फैसले के बारे में बताया है । जेटली ने नई दिल्‍ली में कहा कि रोहिंग्‍या शरणार्थियों का मामला एक नीतिगत मुद्दा है । इन्हीं कारणों के चलते मामले को शीर्ष न्‍यायालय के सामने रखा गया है । देश की सुरक्षा, देश की विदेश नीति आदि कई मसले इससे जुड़े हैं । बांग्‍लादेश की हम मदद भी कर रहे हैं । भारत अधिक जनसंख्‍या वाला देश है । जनसंख्या संतुलन भी एक बड़ा मुद्दा है । इन्हीं बिन्दुओं को ध्यान में रखकर सरकार ने निर्णय लिये हैं । सुप्रीम कोर्ट के सामने सरकार ने अपना निर्णय एफिडेविट के रूप में रख दिया है ।
याद रहे कि सरकार ने दो दिन पहले सर्वोच्च न्‍यायालय में कहा था कि रोहिंग्‍या शरणार्थी अवैध अप्रवासी हैं । सरकार के इस बयान को लेकर देश के सेक्युलर खेमे के पेट में काफी दर्द भी महसूस किया जा रहा है । कश्मीर में मानवाधिकार का जनाजा उठाने वाले, बड़े-बड़े नरसंहारों पर चुप रहने वाले, आतंकवाद पर जुबान न खोलने वाले देश के गद्दार वर्ग ने रोहिंग्या को लेकर मानवाधिकार और नैतिकता के बड़े – बड़े लेक्चर दे डाले हैं । रोहिंग्‍या शरणार्थियों को क्यों विश्व का कोई बड़ा मुस्लिम देश शरम नहीं दे रहा है । शरीयत में तो मुसलमान भाई की मदद की ताकीद की गयी है । इस्लाम के झण्डाबरदारों को रोहिंग्‍या मुसलमानों से पराएपन की बू क्यों आती है ? बांग्लादेश का रोहिंग्‍या शरणार्थियों को मदद देना राजनैतिक शिगूफे से ज्यादा कुछ नहीं है । रोहिंग्‍या शरणार्थियों पर हायतौबा से ज्यादा यह सोचने की जरूरत है कि भारत में इनके बसने से जो असंतुलन पैदा होगा उससे कैसे निबटेंगे ? कश्मीर से सीख लेने की जरूरत है । जितनी जल्दी मामला समझ आ जाएगा उतना ही देश का भला होगा ।