● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
पहली बार रामायणकालीन, प्राच्य ‘आर्य-संस्कृति’ के मुख्य केन्द्र उत्तरप्रदेश के ऐतिहासिक और क्रान्तिकारिक जनपद, ‘देवारण्य’ के नाम से व्युत्पन्न ‘देवरिया’ मे जाना, सुखद रहेगा। अतीत के भौगोलिक और ऐतिहासिक पृष्ठों को पलटने पर ज्ञात होता है कि वह जनपद कभी ‘कोशल-राज्य’ का एक भाग था। उस जनपद का उत्तर-भाग हिमालय से घिरा है, जबकि दक्षिण-भाग मे ‘श्यादिका’ नदी प्रवहमान (‘प्रवाहमान’ अशुद्ध है।) है। वर्ष १९२० मे महात्मा गान्धी ने देवरिया मे एक सार्वजनिक सभा को सम्बोधित किया था, जबकि बाबा राघवदास ने वर्ष १९३० मे ‘नमक-आन्दोलन’ का नेतृत्व किया था।
वहाँ ‘नागरी प्रचारिणी सभा’ भी है, जहाँ यथावसर सारस्वत आयोजन किये जाते रहे हैं। उसी संस्थान के सभागार मे आगामी ४ अक्तूबर को कुछ सुनने, कहने तथा गुनने का क्षण प्राप्त होगा।