राघवेन्द्र कुमार त्रिपाठी ‘राघव’-
ओ! वीणापाणि मा, ओ! पुस्तक धारिणि मा।
ओ! ज्ञान दायिनी मा, ओ! हंसवाहिनी मा।
कर तम का संहार, ज्ञान की ज्योति देती मा।
ओ! वीणापाणि मा, ओ! पुस्तक धारिणि मा॥
विद्या की देवी हो, मा जीवनसूत्र तुम।
नदियों के कल-कल की अप्रतिम ध्वनि तुम।
विहगों के कलरव का संगीत मेरी मा।
ओ! वीणापाणि मा, ओ! पुस्तक धारिणि मा॥
अछिन्न हो अभिन्न हो, मा अपराजेय हो।
दर्शन हो जीवन का, अभिव्यक्ति मातु हो।
वेदों का मूल मा, शास्त्रों की ज्योति मा।
ओ! वीणापाणि मा, ओ! पुस्तक धारिणि माँ॥
आधार उत्सव का, मा श्वेता आप हैं।
संस्कृति और संस्कार का, प्रतिबिम्ब आप हैं।
जड़ को कर चेतन, सद्बुद्धि देती मा।
ओ! वीणापाणि मा, ओ! पुस्तक धारिणि मा॥
पाणिनि के सूत्र मा, तुलसी की मानस मा।
अभिज्ञान कालि का, गीता की ज्योति मा।
साधक की साधना, कवियों की आत्मा।
ओ! वीणापाणि मा! ओ! पुस्तक धारिणि मा॥