विजय कुमार-
2 अक्टूबर देश भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की जयंती मना रहा है। देश को ‘जय जवान जय किसान’ का नारा देने वाले लाल बहादुर शास्त्री ऐसे शख्स थे जो ईमानदारी और खुद्दारी की मिसाल थे। एक बेहद गरीब परिवार में जन्म लेने के बावजूद देश के इतने बड़े पद तक पहुंचने वाले शास्त्री जी ने सदैव देशभक्ति और ईमानदारी की मिसाल पेश की जिसके चलते देश आज भी उनके गुण गाता है।
सरकारी गाड़ी से जुड़ा रोचक किस्सा
शास्त्री जी कितने ईमानदार थे, इस बात का पता एक किस्से से चलता है जो खुद उनके बेटे और राजनीतिज्ञ सुनील शास्त्री ने बयां किया था। पिता पर लिखी गई किताब ‘लाल बहादुर शास्त्री, मेरे बाबूजी’ अनिल शास्त्री बताते है कि1964 में प्रधानमंत्री जैसे पद पर रहते हुए भी शास्त्री जी ने कभी ने पद, सरकारी सुविधाओं और संसाधनों का दुरुपयोग नहीं किया। वो बेहद कम खर्च में जीवन यापन करते थे और दूसरों को भी कम खर्च में जीवन चलाने के लिए प्रोत्साहित करते थे।
उन्हें बतौर प्रधानमंत्री इस्तेमाल करने के लिए एक सरकारी कार इंपाला शेवरले मिली हुई थी जिसे कभी भी प्रयोग करने की उन्हें पूरी छूट थी लेकिन उन्होंने शायद ही कभी कार को निजी प्रयोग के लिए इस्तेमाल किया हो। कार हमेशा आधिकारिक आवास के गैराज में खड़ी रहती और जब कोई विदेशी या राजकीय अतिथि आता तो उसके लिए कार निकाली जाती।
जब बेटे ने इस्तेमाल की सरकारी गाड़ी
एक बार सुनील शास्त्री किसी निजी काम से कार को बाहर ले गए औऱ वापस लौटकर चुपचाप कार खड़ी कर दी। शास्त्री जी को पता चला तो उन्होंने गाड़ी के ड्राइवर को बुलाया औऱ पूछा कि वो कार किसके काम से लेकर गया था।ड्राइवर ने सुनील शास्त्री का नाम बता दिया।
शास्त्री जी ने तुरंत आदेश दिया कि लॉग बुक में लिख दो कि इतने किलोमीटर निजी प्रयोग के लिए कार चलाई गई है। ड्राइवर अवाक सा देख रहा था कि तभी शास्त्री जी ने पत्नी को भी बुलाया औऱ कहा कि जितने किलोमीटर गाड़ी निजी उपयोग के लिए चली है, उसका खर्चा प्रति किलोमीटर के हिसाब से लगाकर उतना पैसा सरकारी खाते में जमा करवा दो।
पुराने कुर्ते मत फेंकों, सर्दियों में कोट के नीचे पहन लूंगा
शास्त्री जी कितने मितव्ययी थे इसका प्रमाण भी इसी किताब में मिलता है। एक बार शास्त्री जी के कपड़ों की अलमारी खोली गई और उनके फटे पुराने कुर्ते निकाल कर फेंके जाने लगे। शास्त्री जी को पता चला कि उनके खादी के पुराने कुर्ते फेंके जा रहे हैं तो वो आए और कुर्तों को वापस अलमारी में रख दिया। घरवालों के साथ साथ नौकर चाकर भी हैरान थे।
शास्त्री जी ने कहा कि खादी के कुर्ते हैं, इन्हें बनाने में जाने कितना प्यार और कितनी मेहनत लगी होगी। इन्हें फेंकों मत,जब सर्दियां आएंगी तो मैं इन्हें कोट के नीचे पहन लूंगा। किसी को पता भी नहीं चलेगा और ये इस्तेमाल में भी आ जाएंगे। ये बड़ी मेहनत से बुने गए हैं, इनका एक एक सूत काम में आना चाहिए।
जब एक कुर्ता फट गया तो शास्त्री ने उसे फेंकने की बजाय पत्नी को दिया औऱ कहा कि इसके कई रूमाल बना दो, सबके काम आ जाएंगे। उनकी ईमानदारी और सादगी से पूरा प्रधानमंत्री आवास चकित रहा करता था। वो कई चीजों को पेंकने की बजाय उसका इस्तेमाल कर लिया करते थे और ऐसा करते हुए उन्हें बिलकुल भी संकोच नहीं होता था।
हमारे प्रेरणास्रोत और हममे अपार ऊर्जा का संचार करने वाला व्यक्तित्व है शास्त्री जी का।बचपन मे तैरकर पढ़ाई के लिए जाने वाले शास्त्री जी ने जो गरीबी देखी थी (नाव वाले को पार ले जाने के लिए पैसे तक नही होते थे उनके पास) उस गरीबी और सादगी का पालन उन्होने सबसे बड़े राजनीतिक पद प्रधानमंत्री की कुर्सी पर पहुँचने के बाद भी जीवंत बनाए रखा।ईमानदारी और सादगी की देश में सबसे बड़ी मिशाल के लिए उन्हे युगों युगों तक याद रखा जाएगा।सबसे बड़े प्रधान सेवक वास्तव में शास्त्री जी ही थे।
यदि वास्तव मे भारत को विकास एवं सामाजिक उत्थान के पथ पर अग्रणी करना है तो आज देश के सभी राजनीतिग्यों एवं नौकरशाहों को माननीय शास्त्री जी के व्यक्तित्व को आत्मसात करना ही होगा यह उनके लिए एक चुनौती है और जो चुनौती को स्वीकार कर उसे पूर्ण करने का सच्चे हृदय से प्रयास न कर पाए उसे सिर्फ कायर ही कहा जा सकता है।
हे ईश्वर हमे इतना आत्मबल प्रदान करें कि हम अपने जीवन में शास्त्री जी की सादगी एव ईमानदारी को निभाने मे सक्षम बन सकें।
—-जय हिंद
—-वंदेमातरम्