विकास दुबे की गिरिफ़्तारी/आत्मसमर्पण पर उठते सवाल

त्वरित प्रतिक्रिया

— आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

यद्यपि विकास दुबे को आज महाकाल, उज्जैन (मध्यप्रदेश) के सुरक्षाकर्मी (९ जुलाई)-द्वारा की गयी पहचान के आधार पर पूर्वाह्न आठ बजे के लगभग उज्जैन की पुलिस ने उज्जैन (मध्यप्रदेश) से गिरिफ़्तार कर लिया है तथापि यह सारा प्रकरण सन्दिग्ध दिख रहा है। अब यह श्रेय उज्जैन (मध्यप्रदेश) की पुलिस को जाता है। जब चप्पे-चप्पे पर उत्तरप्रदेश की पुलिस विकास दुबे की गिरिफ़्तारी के लिए लगी हुई थी तब ‘यूपी-३२ के एस ११०४’ नम्बर की सन्दिग्थ गाड़ी से अथवा किसी भी साधन से वह उज्जैन कैसे पहुँच गया? इससे उत्तरप्रदेश के एस०टी०एफ० की नाकामी साफ़ दिख रही है। जिनके घर के आठ सदस्य मारे गये हैं, वे भी इस पूरे घटना को संशय की दृष्टि से देख रहे हैं।

क्या उत्तरप्रदेश-शासन उसे पुलिस-एनकाउण्टर से बचा रहा है? यदि नहीं तो विकास दुबे उत्तरप्रदेश से मध्यप्रदेश कैसे पहुँच गया? ७ जुलाई को उसे फ़रीदाबाद में देखा गया था। बताया जा रहा है कि कोटा से होकर वह मध्यप्रदेश पहुँच गया। ऐसे में प्रश्न है– विकास दुबे लगातार सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा सड़क-मार्ग से करता रहा ओर एस०टी०एफ० (स्पेशल टास्क फोर्स) हाथ-पर-हाथ धरे रहा। अब तो पाँच लाख रुपये की इनामी राशि महाकाल मन्दिर के सुरक्षाकर्मी को मिलनी चाहिए।

अभी तक यह सुस्पष्ट नहीं है कि विकास दुबे की गिरिफ़्तारी की गयी है अथवा उसने पुलिस के सम्मुख समर्पण किया है। कल (८ जुलाई) जब डी०डी०जी० (विधि-व्यवस्था) प्रशान्त कुमार मीडियाकर्मियों को सम्बोधित कर रहे थे तभी लग गया था कि एक-दो दिनों के भीतर विकास दुबे की गिरिफ़्तारी की सूचना सार्वजनिक हो जायेगी; क्योंकि उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा था– विकास दुबे पृथ्वी पर कहीं भी रहेगा, उसे पकड़ लिया जायेगा; वह बचेगा नहीं।

अब डी०डी०जी० से पूछा जायेगा– विकास दुबे के पाँच गुर्गे अब तक मारे जा चुके हैं, जबकि विकास दुबे अभी तक बचा हुआ है अथवा यों भी कहा जा सकता है कि उसे फ़िलहाल बचा लिया गया है।

यह भी तय है कि विकास दुबे पर ‘थर्ड डिग्री’ का प्रयोग करते हुए कठोरता के साथ यदि पूछ-ताछ की जाये तो बड़ी संख्या में राजनीति और पुलिसतन्त्र में कुण्डली मारे असरदार लोग के चरित्र सार्वजनिक हो जाये।

विकास दुबे जहाँ से पकड़ा गया है, वहाँ से उच्च न्यायालय, उत्तरप्रदेश के अधिवक्ता की उक्त नम्बरवाली गाड़ी पकड़ी गयी है, जिसमें दो वकील अथवा अन्य– सुरेश और बिट्टू भी थे, ऐसा अभी तक बताया गया है और उस बताने में भी झोल दिख रहा है। उनसे पुलिस-हिरासत में पूछ-ताछ जारी है।

“मैं विकास दुबे हूँ, कानपुरवाला”, पुलिस के दबाव पर मुख्य आरोपित विकास दुबे से दबंगई के साथ ज़ोर से बुलवाना इस बात की ओर संकेत करता है कि यह तथ्य सार्वजनिक हो जाये कि महाकाल मन्दिर, उज्जैन (मध्यप्रदेश) से दुर्दान्त अपराधी की कथित गिरिफ़्तारी की जा चुकी है। विकास दुबे का ज़ोर से चिल्लाकर अपना परिचय देना, कई प्रश्नों को जन्म देता है।

पुलिस का चरित्र समझना बहुत आसान नहीं होता; क्योंकि वह अपने ‘बाप’ की भी सगी नहीं होती। ऐसा भी हो सकता है कि जब उज्जैन में जाकर एस०टी०एफ० अपराधी विकास दुबे को उत्तरप्रदेश में ला रहा होगा तब रास्ते में ही ‘नाटकीय ढंग’ से उसकी हत्या कर ‘एनकाउण्टर’ दिखा दे। बहरहाल, वस्तुस्थिति आज सुस्पष्ट हो जायेगी।

(आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; ९ जुलाई, २०२० ईसवी)