● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
नरेन्द्र मोदी ने जिन-जिन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए नोटबन्दी (उपयुक्त शब्द ‘नोटपरिवर्त्तन’ है।) की थी, उन्हें लेकर वे और उनकी सरकार अब बुरी तरह से घिर चुकी हैं। उच्चतम न्यायालय मे अभी तक इसके विरोध मे ५८ याचिकाएँ प्रस्तुत की गयी थीं, जिनकी न जाने किन कारणो से अनदेखी की जाती रही है। अब उच्चतम न्यायालय मे देश के प्रमुख न्यायाधीशवृन्द ५८ याचिकाओं पर कुछ ही दिनों-बाद सुनवाई करेंगे, जिसका सीधा प्रसारण किया जायेगा और देश की जनता उसे देख सकेगी। उस पारदर्शी सुनवायी मे देश की जनता यह अच्छी तरह से समझ सकेगी कि नरेन्द्र मोदी ने नोटबन्दी करने की घोषणा करते हुए, किस तरह से अपने तरह-तरह के उल्लू सीधा कर चुके हैं।
नरेन्द्र मोदी ने नोटबन्दी करने के पीछे अधोलिखित तर्क प्रस्तुत किये थे :–
● नोटबन्दी से काले धन का कारबार (‘कारोबार’ अशुद्ध है।) समाप्त हो जायेगा।
● हमारे नये नोट ऐसे हैं, जिनके ‘नक़्ली’ (‘नकली’ अशुद्ध है।) नोट बनाये ही नहीं जा सकते।
● नोटबन्दी से नक्सलवाद और आतंकवाद पर क़ाबू पाया जायेगा।
न्यायाधीशवृन्द ‘न्यू इण्डिया की मोदी-सरकार’ से अधोलिखित आशय के प्रश्न करेंगे :–
◆ काले धन का कारबार तो नोटबन्दी के बाद से भी “दिन दूना, रात चौगुनी” बढ़ता जा रहा है; ऐसा क्यों हो रहा है?
◆ लगातार बदले गये नोटों के नक़्ली नोट पकड़े जा रहे हैं; ऐसा क्यों है?
◆ नोटबन्दी के बाद के ९ लाख ३० हज़ार करोड़ नोट कहाँ हैं?
◆ ६८ हज़ार करोड़ नोट मे से १, ६०० करोड़ से ज़्यादा के नोट कहाँ ग़ायब कर दिये गये हैं?
इस सुनवाई की अवधि मे व्यापारी महेश शाह ने नोटबन्दी के समय और उसके बाद कितने और कैसे नोट बदले थे? विपक्षी दलों के ही नेताओं के रुपये क्यों नष्ट कराये गये थे? आदिक प्रश्न भी किये जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त एक अन्य व्यापारी से सम्बन्धित प्रश्न भी किये जा सकते हैं।
कुल मिलाकर, स्वतन्त्र भारत की न्यायपालिका मे पहली बार एक ऐतिहासिक सुनवायी की जायेगी, जो ‘सरकार बनाम देश’ की जनता सिद्ध होगी।
निश्चित रूप से कथित मोदी-सरकार के पास उपर्युक्त किसी भी प्रश्न का ठोस उत्तर नहीं होगा, इसलिए वह न्यायाधीशवृन्द के प्रश्नो को टालने की भरसक कोशिश करेगी।
निस्सन्देह, नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार उच्चतम न्यायालय के कठघरे मे होगी और उन्हें ‘सच का सामना’ करना ही पड़ेगा।
(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; ६ अक्तूबर, २०२२ ईसवी।)